रायपुर 27 अगस्त 2023 | चंद्रयान, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसरो) द्वारा प्रक्षिप्त किया गया एक महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशन है, जिसका उद्देश्य चंद्रमा की साक्षात्कार करना और वैज्ञानिक अनुसंधान करना है। इस मिशन के माध्यम से भारत अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत करता है और वैज्ञानिक सामग्री और डेटा की उपलब्धता में सुधार करता है।

चंद्रयान का पहला मिशन, चंद्रयान-1, 22 अक्टूबर 2008 को विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (आईएस्रो) द्वारा प्रक्षिप्त किया गया था। इस मिशन के द्वारा भारत ने चंद्रमा के पास पहुँचने का प्रयास किया था, और यह मिशन तकनीकी दृष्टि से सफल रहा, जो अंत में भारतीय अंतरिक्ष यातायात को संवारने में मदद करने में मदद की।
चंद्रयान-2, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसरो) के द्वारा 22 जुलाई 2019 को प्रक्षिप्त किया गया दूसरा मिशन है, जिसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी धुवा क्षेत्र में विकसित हुए बारूदी और अन्य योजनाओं को जांचना और चंद्रमा की सतह पर उपकरण स्थापित करना है। इसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की चरम उपग्रही बारूदी बनावट को जांचकर मानव यात्राओं के लिए योग्यता की जांच करना है। इसके अलावा, चंद्रयान-2 मिशन ने विज्ञानिक अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण डेटा भी प्राप्त किया है, जो चंद्रमा की भूमि के समीप होने की स्थिति का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है। चंद्रयान-2 मिशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ‘विक्रम’ लैंडर था, जिसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर संकेत बारूदी के लिए सही स्थान की पहचान करना था। हालांकि विक्रम का लैंडिंग पूरी तरह से सफल नहीं हो सका, लेकिन यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था जो चंद्रमा के प्रत्येक कोने को पहचानने की क्षमता को मजबूत करेगा।

चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्रमिशन है, जिसका उद्देश्य चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर और रोवर को स्थापित करना है। इस मिशन का लॉन्च 14 जुलाई 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से हुआ, और 23 अगस्त को चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग हुई। चंद्रयान-3 में तीन मुख्य मॉड्यूल हैं: प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल, और प्रज्ञान रोवर²³। प्रणोदन मॉड्यूल ने लैंडर को प्रमोचन प्रवेशन से चंद्र कक्षा तक पहुंचाया, जहां से वह 4 किमी x 2.4 किमी के क्षेत्र में समतलता से उतरा। लैंडर में प्रज्ञान रोवर समायोजित है, जो 26 किलो का है, और 50W की ऊर्जा से काम करता है²। प्रज्ञान रोवर में अल्फा कण-किरन स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) और लेजर-प्रेरित-तोड़ स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS) जैसे संसाधन हैं, जो चांद की सतह के सामान्य, मिनरल, पानी, समसामायिकता, प्रकाशीकता, पुन:प्रकाशीकता को खोजने तथा उसकी प्रदान करना है।
चंद्रयान मिशनों के माध्यम से भारत अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में नए मील के पथ पर बढ़ता रहा है और वैज्ञानिक समुद्रीकरण के क्षेत्र में भी योगदान देने का यह नया कदम है। चंद्रयान के माध्यम से हमने चंद्रमा के रहस्यों की दुनिया में जाकर खोज की है, जो आगे की अनुसंधान में मदद करेगी और अंतरिक्ष में भारत की प्रतिष्ठा को और भी मजबूती देगी।