भोंगापाल का बौद्ध चैत्यगृह तथा मंदिरों के भग्नावशेष बस्तर में बौद्ध भिक्षुओं के आवागमन तथा निवास के प्रमाणों को पुष्टि प्रदान करते हैं।भोंगापाल मे हुई खुदाई से बौद्धकालीन चैत्य मंदिर, सप्त मातृका मंदिर और शिव मंदिर के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं.कोंडागांव जिले के केशकाल और कोंडागांव के मध्य स्थित फरसगांव से 16 किलोमीटर पश्चिम में बड़े डोंगर से आगे ग्राम भोंगापाल स्थित है।
भोंगापाल से तीन किलोमीटर दूर तमुर्रा नदी के तट पर एक टीले में विशाल चैत्य मंदिर, सप्तमातृका मंदिर और शिव मंदिर के भग्न अवशेष प्राप्त हुए हैं। बौद्ध प्रतिमा टीले को यहां के स्थानीय लोग डोकरा बाबा टीला के नाम से भी जानते हैं। सप्त मातृका टीला या रानी टीला, बौद्ध प्रतिमा टीला से 200 गज की दूरी पर स्थित है। इसके अतिरिक्त यहां एक बड़ा शिव मंदिर एवं अन्य प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष हैं किन्तु वहां कोई प्रतिमा प्राप्त नहीं हुई है।
यहां से प्राप्त बौद्ध चैत्य तथा प्राचीन मंदिर 5-6वीं शताब्दी नल काल के हैं। चैत्य मंदिर का निर्माण एक ऊंचे चतूबरे पर किया गया है। मंदिर पूर्वाभिमुखी है। इस चबूतरे के मंदिर के भग्नावशेषों का पिछला हिस्सा अर्ध-वृत्ताकार है जिस पर मंदिर का गर्भगृह, प्रदक्षिणा पथ, मंडप तथ देवपीठिका के भग्नावशेष हैं। यह कहा जा सकता है कि संभवत: यह बौद्ध भिक्षुओं का निवासस्थल रहा होगा।
खुदाई से पहले यहां एक विशाल बुद्ध प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यह प्रतिमा प्राचीन होने के साथ-साथ खंडित अवस्था में है। चैत्य मंदिर ईटों से निर्मित है और यह छत्तीसगढ़ का प्रथम व एकमात्र चैत्य मंदिर है जो बेहद महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहर है।यहां के स्थानीय सिरहा लोग इस बुद्ध प्रतिमा को तंत्र विद्या के देवता गांडादेव के नाम से संबोधित करते हैं तथा सप्तमातृका को गांडादेव की पत्नियां मानते हैं।
भोंगापाल में प्राप्त द्विभुजी बुद्ध की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। दोनों हाथ खंडित है। विशाल ठोस प्रभामंडल और सिकुड़ा हुआ पेट है। मुखमंडल सौम्य अंडाकार है।सप्तमातृका मंदिर के भग्नावशेष चैत्य मंदिर टीले से दो सौ गज की दूरी पर मिलते हैं। ईंटों से निर्मित एक मंदिर पश्चिमाभिमुखी है। इस मंदिर का समय 5वीं शताब्दी ईस्वी माना जाता है। सभी मित्रो को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।photo @pankhu sori